पत्राचार के ज़रिए राजनीति विज्ञान में डिग्री
नरेंद्र मोदी की दिली इच्छा थी कि प्राइमरी स्कूल के बाद वो जामनगर के सैनिक स्कूल में दाख़िला लें लेकिन उनके परिवार आर्थिक स्थिति ऐसी नहीं थी
कि वो वहाँ दाखिला ले पाते.
दूसरे उनके पिता ये नहीं चाहते थे कि वो पढ़ने के लिए वडनगर से बाहर जाएं. उन्होंने एक स्थानीय डिग्री कॉलेज में दाख़िला भी लिया लेकिन उपस्थिति कम होने के कारण उन्हें कॉलेज छोड़ना पड़ा.
बाद में उन्होंने पत्राचार के ज़रिए पहले दिल्ली विश्वविद्यालय से बीए किया और फिर गुजरात विश्वविद्यालय से राजनीति शास्त्र में एमए.
सूचना के अधिकार के तहत जब कुछ लोगों ने मोदी की एमए डिग्री का विवरण जानना चाहा तो गुजरात विश्वविद्यालय ने बताया कि उन्होंने 1983 में प्रथम श्रेणी में एमए की परीक्षा पास की थी.
बाद में गुजरात विश्वविद्यालय के एक प्रोफ़ेसर जयंतीभाई पटेल ने ये कह कर विवाद खड़ा कर दिया कि मोदी की डिग्री में जिन विषयों का ज़िक्र किया गया है, वो कभी राजनीति शास्त्र के एमए के पाठ्यक्रम में रखे ही नहीं गए.
गुजरात विश्वविद्यालय ने इन आरोपों का खंडन किया.
जब मोदी 13 साल के थे, जब उनके परिवार ने 11 साल की जसोदाबेन से उनकी शादी करवा दी. कुछ दिन उनके साथ रहने के बाद मोदी ने अपना घर छोड़ दिया.
दुनिया को उसके बारे में पहली बार पता तब चला जब उन्होंने 2014 लोकसभा चुनाव के हलफ़नामे में इसका ज़िक्र किया, हालांकि गुजरात के राजनीतिक हल्कों में दबी-ज़ुबान में इसकी चर्चा होती थी.
दिलचस्प बात ये है कि मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद जसोदाबेन को जब प्रोटोकॉल के अनुरूप सरकारी सुरक्षा प्रदान करवाई गई तो उन्होंने अपने-आप को एक अजीब सी स्थिति में पाया.
फ़र्स्ट पोस्ट को दिए इंटरव्यू में उन्होंने बताया कि जब वो सार्वजनिक वाहन से सफ़र करती हैं तो सुरक्षाकर्मी पुलिस वाहन में उनकी बस के पीछे चलते हैं.
मोदी को राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ में लाने का श्रेय अगर किसी को दिया जा सकता है तो वो हैं लक्ष्मणराव इनामदार उर्फ़ 'वकील साहब.'
उस ज़माने में वकील साहब गुजरात में आरएसएस के प्रांत प्रचारक हुआ करते थे.
एमवी कामथ और कालिंदी रन्डेरी अपनी किताब 'नरेंद्र मोदी: द आर्किटेक्ट ऑफ़ अ मॉड्रन स्टेट' में लिखते हैं, "एक बार मोदी के माता-पिता को इस बात का बहुत दुख पहुंचा था कि वो दीवाली पर घर नहीं आए थे. उस दिन वकील साहब उनको आरएसएस की सदस्यता दिलवा रहे थे."
वर्ष 1984 में वकील साहब का निधन हो गया लेकिन मोदी उन्हें कभी भूल नहीं पाए. बाद में मोदी ने एक और आरएसएस कार्यकर्ता राजाभाई नेने के साथ मिल कर वकील साहब पर एक किताब लिखी, 'सेतुबंध.'
दूसरों को मोदी का जो गुण सबसे अधिक आकर्षित करता था, वो है अनुशासन.
वरिष्ठ पत्रकार जी संपथ बताते हैं, "मोदी के सबसे बड़े भाई सोमाभाई को ये कहते बताया गया है कि मोदी बचपन से ही राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ में शामिल होना चाहते थे, क्योंकि वो इस बात से ख़ासे प्रभावित थे कि शाखा में सिर्फ़ एक शख़्स आदेश देता है और हर कोई उसका पालन करता है."
एक ज़माने में मोदी के क़रीबी रहे और बाद में उनके विरोधी बने शंकर सिंह वघेला बताते हैं, "मोदी शुरू से ही चीज़ों को अलग ढंग से करने के आदी रहे हैं. अगर हम लोग लंबी आस्तीन की कमीज़ें पहनते थे, तो मोदी छोटी आस्तीन की कमीज़ों में देखे जाते थे. हम लोग जब ख़ाकी 'शॉर्ट्स' पहनते थे, तो मोदी का पसंदीदा रंग सफ़ेद हुआ करता था."
एक अक्तूबर 2001 को मोदी हवाई दुर्घटना में मरने वाले अपने एक पत्रकार मित्र के अंतिम संस्कार में भाग ले रहे थे. तभी उनके मोबाइल फ़ोन की घंटी बजी.
दूसरे छोर पर प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी थे. उन्होंने पूछा, "आप कहाँ हैं?" तय हुआ कि शाम को मोदी वाजपेयी से मिलने जाएंगे.
जब शाम को मोदी 7 रेसकोर्स रोड पहुंचे तो वाजपेयी ने उनसे मज़ाक किया, "आप कुछ ज़्यादा ही तंदरुस्त दिखाई दे रहे हैं. दिल्ली में आपका कुछ ज़्यादा ही रहना हो गया है. पंजाबी खाना खाते खाते आपका वज़न बढ़ता जा रहा है. आप गुजरात जाइए और वहाँ काम करिए."
एंडी मरीनो लिखते हैं, "मोदी समझे कि शायद उन्हें पार्टी के सचिव की हैसियत से गुजरात में कुछ काम करना है. उन्होंने बहुत मासूमियत ने पूछा. इसका मतलब ये हुआ कि जिन राज्यों को मैं देख रहा हूँ, उनको अब मैं नहीं देखूँगा? जब वाजपेयी ने उन्हें सूचित किया कि वो केशूभाई पटेल के बाद गुजरात के अगले मुख्यमंत्री होंगे तो मोदी ने ये पद लेने से साफ़ इनकार कर दिया."
"उन्होंने कहा कि वे गुजरात में पार्टी को ठीक करने के लिए महीने में 10 दिन दे सकता हैं, लेकिन मुख्यमंत्री नहीं बनेंगे. वाजपेयी उन्हें मनाते रहे, लेकिन मोदी नहीं माने. बाद में आडवाणी को उन्हें फ़ोन कर कहना पड़ा, "सबने आपके नाम पर मुहर लगा दी है. जाइए और शपथ लीजिए." वाजपेयी के फ़ोन आने के छठे दिन यानी 7 अक्तूबर, 2001 को नरेंद्र मोदी ने गुजरात के मुख्यमंत्री के तौर पर शपथ ली."
दूसरे उनके पिता ये नहीं चाहते थे कि वो पढ़ने के लिए वडनगर से बाहर जाएं. उन्होंने एक स्थानीय डिग्री कॉलेज में दाख़िला भी लिया लेकिन उपस्थिति कम होने के कारण उन्हें कॉलेज छोड़ना पड़ा.
बाद में उन्होंने पत्राचार के ज़रिए पहले दिल्ली विश्वविद्यालय से बीए किया और फिर गुजरात विश्वविद्यालय से राजनीति शास्त्र में एमए.
सूचना के अधिकार के तहत जब कुछ लोगों ने मोदी की एमए डिग्री का विवरण जानना चाहा तो गुजरात विश्वविद्यालय ने बताया कि उन्होंने 1983 में प्रथम श्रेणी में एमए की परीक्षा पास की थी.
बाद में गुजरात विश्वविद्यालय के एक प्रोफ़ेसर जयंतीभाई पटेल ने ये कह कर विवाद खड़ा कर दिया कि मोदी की डिग्री में जिन विषयों का ज़िक्र किया गया है, वो कभी राजनीति शास्त्र के एमए के पाठ्यक्रम में रखे ही नहीं गए.
गुजरात विश्वविद्यालय ने इन आरोपों का खंडन किया.
जब मोदी 13 साल के थे, जब उनके परिवार ने 11 साल की जसोदाबेन से उनकी शादी करवा दी. कुछ दिन उनके साथ रहने के बाद मोदी ने अपना घर छोड़ दिया.
दुनिया को उसके बारे में पहली बार पता तब चला जब उन्होंने 2014 लोकसभा चुनाव के हलफ़नामे में इसका ज़िक्र किया, हालांकि गुजरात के राजनीतिक हल्कों में दबी-ज़ुबान में इसकी चर्चा होती थी.
दिलचस्प बात ये है कि मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद जसोदाबेन को जब प्रोटोकॉल के अनुरूप सरकारी सुरक्षा प्रदान करवाई गई तो उन्होंने अपने-आप को एक अजीब सी स्थिति में पाया.
फ़र्स्ट पोस्ट को दिए इंटरव्यू में उन्होंने बताया कि जब वो सार्वजनिक वाहन से सफ़र करती हैं तो सुरक्षाकर्मी पुलिस वाहन में उनकी बस के पीछे चलते हैं.
मोदी को राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ में लाने का श्रेय अगर किसी को दिया जा सकता है तो वो हैं लक्ष्मणराव इनामदार उर्फ़ 'वकील साहब.'
उस ज़माने में वकील साहब गुजरात में आरएसएस के प्रांत प्रचारक हुआ करते थे.
एमवी कामथ और कालिंदी रन्डेरी अपनी किताब 'नरेंद्र मोदी: द आर्किटेक्ट ऑफ़ अ मॉड्रन स्टेट' में लिखते हैं, "एक बार मोदी के माता-पिता को इस बात का बहुत दुख पहुंचा था कि वो दीवाली पर घर नहीं आए थे. उस दिन वकील साहब उनको आरएसएस की सदस्यता दिलवा रहे थे."
वर्ष 1984 में वकील साहब का निधन हो गया लेकिन मोदी उन्हें कभी भूल नहीं पाए. बाद में मोदी ने एक और आरएसएस कार्यकर्ता राजाभाई नेने के साथ मिल कर वकील साहब पर एक किताब लिखी, 'सेतुबंध.'
दूसरों को मोदी का जो गुण सबसे अधिक आकर्षित करता था, वो है अनुशासन.
वरिष्ठ पत्रकार जी संपथ बताते हैं, "मोदी के सबसे बड़े भाई सोमाभाई को ये कहते बताया गया है कि मोदी बचपन से ही राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ में शामिल होना चाहते थे, क्योंकि वो इस बात से ख़ासे प्रभावित थे कि शाखा में सिर्फ़ एक शख़्स आदेश देता है और हर कोई उसका पालन करता है."
एक ज़माने में मोदी के क़रीबी रहे और बाद में उनके विरोधी बने शंकर सिंह वघेला बताते हैं, "मोदी शुरू से ही चीज़ों को अलग ढंग से करने के आदी रहे हैं. अगर हम लोग लंबी आस्तीन की कमीज़ें पहनते थे, तो मोदी छोटी आस्तीन की कमीज़ों में देखे जाते थे. हम लोग जब ख़ाकी 'शॉर्ट्स' पहनते थे, तो मोदी का पसंदीदा रंग सफ़ेद हुआ करता था."
एक अक्तूबर 2001 को मोदी हवाई दुर्घटना में मरने वाले अपने एक पत्रकार मित्र के अंतिम संस्कार में भाग ले रहे थे. तभी उनके मोबाइल फ़ोन की घंटी बजी.
दूसरे छोर पर प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी थे. उन्होंने पूछा, "आप कहाँ हैं?" तय हुआ कि शाम को मोदी वाजपेयी से मिलने जाएंगे.
जब शाम को मोदी 7 रेसकोर्स रोड पहुंचे तो वाजपेयी ने उनसे मज़ाक किया, "आप कुछ ज़्यादा ही तंदरुस्त दिखाई दे रहे हैं. दिल्ली में आपका कुछ ज़्यादा ही रहना हो गया है. पंजाबी खाना खाते खाते आपका वज़न बढ़ता जा रहा है. आप गुजरात जाइए और वहाँ काम करिए."
एंडी मरीनो लिखते हैं, "मोदी समझे कि शायद उन्हें पार्टी के सचिव की हैसियत से गुजरात में कुछ काम करना है. उन्होंने बहुत मासूमियत ने पूछा. इसका मतलब ये हुआ कि जिन राज्यों को मैं देख रहा हूँ, उनको अब मैं नहीं देखूँगा? जब वाजपेयी ने उन्हें सूचित किया कि वो केशूभाई पटेल के बाद गुजरात के अगले मुख्यमंत्री होंगे तो मोदी ने ये पद लेने से साफ़ इनकार कर दिया."
"उन्होंने कहा कि वे गुजरात में पार्टी को ठीक करने के लिए महीने में 10 दिन दे सकता हैं, लेकिन मुख्यमंत्री नहीं बनेंगे. वाजपेयी उन्हें मनाते रहे, लेकिन मोदी नहीं माने. बाद में आडवाणी को उन्हें फ़ोन कर कहना पड़ा, "सबने आपके नाम पर मुहर लगा दी है. जाइए और शपथ लीजिए." वाजपेयी के फ़ोन आने के छठे दिन यानी 7 अक्तूबर, 2001 को नरेंद्र मोदी ने गुजरात के मुख्यमंत्री के तौर पर शपथ ली."
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