पाकिस्तान में हिन्दुओं का जबरन धर्मांतरण क्या थमेगा
भोजपुरी सिनेमा से उनके सक्रिय जुड़ाव का क़िस्सा बहुत इमोशनल है. 1996 में वे शाहरुख़ ख़ान अभिनीत फ़िल्म 'आर्मी' कर रहे थे. एक दिन सेट पर किसी
बड़ी शख्सियत ने भोजपुरी को दरिद्रों की भाषा कह दिया. "दिल पर चोट लग गई
बाबू. उसी दिन से क़सम खाए कि अपनी भाषा के लिए कुछ करके दम लेंगे."
उन्होंने किया भी. विदेशों में कम पैसे में स्टेज शो से लेकर नामचीन अभिनेत्रियों को कम पैसे में भोजपुरी फ़िल्में करने के लिए मिन्नतें करने तक.
2014 में अचानक वे राजनीति में आ गए और कांग्रेस के टिकट पर अपनी पैतृक सीट जौनपुर से चुनाव भी लड़े पर उन्हें केवल 42759 वोट मिले और वे हार गए. 2017 में उन्होंने नरेन्द्र मोदी से प्रभावित होकर भाजपा की सदस्यता ग्रहण कर ली.
तीन बेटियों और एक बेटे के पिता रवि किशन मोदी के अलावा लालबहादुर शास्त्री से बहुत प्रभावित हैं.
वे कहते हैं, "गाँव की ज़मीन से निकल कर राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय मंचों पर अपनी क़ाबिलियत और जुझारूपन का जैसा परिचय उन्होंने दिया वो बहुत प्रेरित करता है." अब मोदी की भी यही ख़ासियत उन्हें मोहित करती है.
कभी उन्होंने कहा था- "लम्बे समय तक एकाग्रचित्त होकर अपने लक्ष्य के बारे में सोचिये तो कुछ भी असंभव नहीं रह जाता." उनकी ज़िंदगी का सफ़र इस बात पर तस्दीक़ की मुहर-दर-मुहर लगाता नज़र आता है.
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हालांकि, इमरान ख़ान के इस बयान को कई तरह से देखा गया. बीजेपी अक्सर कांग्रेस पर पाकिस्तान की भाषा बोलने का आरोप लगाती है लेकिन इमरान ख़ान के बयान से कांग्रेस को भी मौक़ा मिल गया और उसने कहना शुरू कर दिया कि बीजेपी का पाकिस्तान के साथ गठजोड़ है.
एक तर्क ये भी दिया जा रहा है कि असल में पाकिस्तानी पीएम ने ऐसा कहकर भारत की विपक्षी पार्टियों की मदद की है. लेकिन इमरान ख़ान ने जो कहा है, उसमें कितनी सच्चाई है और उसका क्या मतलब है? सवाल है कि क्या इमरान ख़ान वाक़ई चाहते हैं कि मोदी दोबारा प्रधानमंत्री बनें?
पाकिस्तान एक इस्लामिक देश है और भारत सेक्युलर देश. दूसरी तरफ़ भारत के भीतर एक तबके को लगता है कि बीजेपी ने देश की धर्मनिरपेक्षता को कमज़ोर किया है. ऐसे में इमरान ख़ान क्या केवल शांतिवार्ता की संभावनाओं के कारण मोदी को दोबारा प्रधानमंत्री के तौर पर देखना चाहते हैं?
पाकिस्तान के इतिहासकार मुबारक़ अली का मानना है कि उनके मुल्क की सियासी पार्टियों और जिहादी धड़ों को भारत में हिन्दूवादी पार्टी बीजेपी का सत्ता में रहना रास आना कोई चौंकाने वाला नहीं है.
मुबारक़ अली कहते हैं कि हिन्दुस्तान में हिन्दू राष्ट्रवादी पार्टी के मज़बूत होने से यहां की सियासी पार्टियों और जिहादी धड़ों को खाद-पानी मिलता है.
मुबारक अली कहते हैं, ''पाकिस्तान और भारत दोनों में अतिवादी हैं. पाकिस्तान में एक आम धारणा है कि दो अतिवादी मिलकर कोई सही फ़ैसला कर सकते हैं. पाकिस्तान को लगता है कि हिन्दु्स्तान में कोई अतिवादी शासक होगा तो वो लोकतांत्रिक मूल्यों को धक्का दे सकता है, अवाम की राय का उल्लंघन कर सकता है और अपनी सोच को थोप सकता है. पाकिस्तान में ज़्यादातर पार्टियां अतिवादी हैं और एंटी इंडिया भावना के लिए बीजेपी का सत्ता में रहना उन्हें भाता है. भारत में जब भी अतिवादी पार्टी सत्ता में आती है तो इससे पाकिस्तान को सपोर्ट मिलता है.''
ये भी सच है कि बीजेपी ने सत्ता में रहने के दौरान कश्मीर पर बातचीत के लिए मज़बूत पहल की है जो कि कांग्रेस नहीं कर पाई. जब अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार गठबंधन की सरकार थी, तब भी वो बस से पाकिस्तान पहुंच गए थे.
वाजपेयी के बाद दस सालों तक कांग्रेस की सरकार रही लेकिन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह कभी पाकिस्तान नहीं गए. दूसरी तरफ़ मोदी के पीएम बने एक साल भी नहीं हुआ था कि वो बिना किसी घोषणा के पाकिस्तान पहुंच गए थे.
उन्होंने किया भी. विदेशों में कम पैसे में स्टेज शो से लेकर नामचीन अभिनेत्रियों को कम पैसे में भोजपुरी फ़िल्में करने के लिए मिन्नतें करने तक.
2014 में अचानक वे राजनीति में आ गए और कांग्रेस के टिकट पर अपनी पैतृक सीट जौनपुर से चुनाव भी लड़े पर उन्हें केवल 42759 वोट मिले और वे हार गए. 2017 में उन्होंने नरेन्द्र मोदी से प्रभावित होकर भाजपा की सदस्यता ग्रहण कर ली.
तीन बेटियों और एक बेटे के पिता रवि किशन मोदी के अलावा लालबहादुर शास्त्री से बहुत प्रभावित हैं.
वे कहते हैं, "गाँव की ज़मीन से निकल कर राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय मंचों पर अपनी क़ाबिलियत और जुझारूपन का जैसा परिचय उन्होंने दिया वो बहुत प्रेरित करता है." अब मोदी की भी यही ख़ासियत उन्हें मोहित करती है.
कभी उन्होंने कहा था- "लम्बे समय तक एकाग्रचित्त होकर अपने लक्ष्य के बारे में सोचिये तो कुछ भी असंभव नहीं रह जाता." उनकी ज़िंदगी का सफ़र इस बात पर तस्दीक़ की मुहर-दर-मुहर लगाता नज़र आता है.
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पिछले हफ़्ते पाकिस्तानी प्रधानमंत्री
इमरान ख़ान ने रिपोर्टरों से बातचीत करते हुए कहा था कि अगर बीजेपी फिर से
चुनाव जीत जाती है तो 'शांति वार्ता की संभावनाएं' ज़्यादा रहेंगी.
इमरान
ख़ान का तर्क है कि हिन्दू राष्ट्रवादी पार्टी बीजेपी की तुलना में विपक्षी पार्टी कांग्रेस कश्मीर मसले पर बात करने में डरी रहती है. हालांकि, इमरान ख़ान के इस बयान को कई तरह से देखा गया. बीजेपी अक्सर कांग्रेस पर पाकिस्तान की भाषा बोलने का आरोप लगाती है लेकिन इमरान ख़ान के बयान से कांग्रेस को भी मौक़ा मिल गया और उसने कहना शुरू कर दिया कि बीजेपी का पाकिस्तान के साथ गठजोड़ है.
एक तर्क ये भी दिया जा रहा है कि असल में पाकिस्तानी पीएम ने ऐसा कहकर भारत की विपक्षी पार्टियों की मदद की है. लेकिन इमरान ख़ान ने जो कहा है, उसमें कितनी सच्चाई है और उसका क्या मतलब है? सवाल है कि क्या इमरान ख़ान वाक़ई चाहते हैं कि मोदी दोबारा प्रधानमंत्री बनें?
पाकिस्तान एक इस्लामिक देश है और भारत सेक्युलर देश. दूसरी तरफ़ भारत के भीतर एक तबके को लगता है कि बीजेपी ने देश की धर्मनिरपेक्षता को कमज़ोर किया है. ऐसे में इमरान ख़ान क्या केवल शांतिवार्ता की संभावनाओं के कारण मोदी को दोबारा प्रधानमंत्री के तौर पर देखना चाहते हैं?
पाकिस्तान के इतिहासकार मुबारक़ अली का मानना है कि उनके मुल्क की सियासी पार्टियों और जिहादी धड़ों को भारत में हिन्दूवादी पार्टी बीजेपी का सत्ता में रहना रास आना कोई चौंकाने वाला नहीं है.
मुबारक़ अली कहते हैं कि हिन्दुस्तान में हिन्दू राष्ट्रवादी पार्टी के मज़बूत होने से यहां की सियासी पार्टियों और जिहादी धड़ों को खाद-पानी मिलता है.
मुबारक अली कहते हैं, ''पाकिस्तान और भारत दोनों में अतिवादी हैं. पाकिस्तान में एक आम धारणा है कि दो अतिवादी मिलकर कोई सही फ़ैसला कर सकते हैं. पाकिस्तान को लगता है कि हिन्दु्स्तान में कोई अतिवादी शासक होगा तो वो लोकतांत्रिक मूल्यों को धक्का दे सकता है, अवाम की राय का उल्लंघन कर सकता है और अपनी सोच को थोप सकता है. पाकिस्तान में ज़्यादातर पार्टियां अतिवादी हैं और एंटी इंडिया भावना के लिए बीजेपी का सत्ता में रहना उन्हें भाता है. भारत में जब भी अतिवादी पार्टी सत्ता में आती है तो इससे पाकिस्तान को सपोर्ट मिलता है.''
ये भी सच है कि बीजेपी ने सत्ता में रहने के दौरान कश्मीर पर बातचीत के लिए मज़बूत पहल की है जो कि कांग्रेस नहीं कर पाई. जब अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार गठबंधन की सरकार थी, तब भी वो बस से पाकिस्तान पहुंच गए थे.
वाजपेयी के बाद दस सालों तक कांग्रेस की सरकार रही लेकिन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह कभी पाकिस्तान नहीं गए. दूसरी तरफ़ मोदी के पीएम बने एक साल भी नहीं हुआ था कि वो बिना किसी घोषणा के पाकिस्तान पहुंच गए थे.
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